Breaking News
औद्योगिक निवेश के क्षेत्र में कारगर साबित होगा गृह मंत्री का दौरा- महाराज
औद्योगिक निवेश के क्षेत्र में कारगर साबित होगा गृह मंत्री का दौरा- महाराज
‘घुसपैठ असम की जनसंख्या संतुलन बिगाड़ रही’– हिमंत बिस्व सरमा
‘घुसपैठ असम की जनसंख्या संतुलन बिगाड़ रही’– हिमंत बिस्व सरमा
त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव- ड्यूटी पर तैनात 3395 कर्मचारी रहेंगे मताधिकार से वंचित
त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव- ड्यूटी पर तैनात 3395 कर्मचारी रहेंगे मताधिकार से वंचित
“गठबंधन में एकता नहीं, सिर्फ सत्ता की होड़ दिखी” – उद्धव ठाकरे
“गठबंधन में एकता नहीं, सिर्फ सत्ता की होड़ दिखी” – उद्धव ठाकरे
क्या इंटरमिटेंट फास्टिंग सुरक्षित है? आइये जानते हैं इसके फायदे और नुकसान
क्या इंटरमिटेंट फास्टिंग सुरक्षित है? आइये जानते हैं इसके फायदे और नुकसान
घर से निकाले बुजुर्गों को मिली राहत, डीएम कोर्ट ने रद्द की गिफ्ट डीड
घर से निकाले बुजुर्गों को मिली राहत, डीएम कोर्ट ने रद्द की गिफ्ट डीड
जयराम रमेश का केंद्र सरकार पर तीखा हमला, कहा- पीएम मोदी ट्रंप के दावे पर चुप क्यों?
जयराम रमेश का केंद्र सरकार पर तीखा हमला, कहा- पीएम मोदी ट्रंप के दावे पर चुप क्यों?
अहान पांडे और अनीत पड्डा की डेब्यू फिल्म ‘सैयारा’ ने पहले दिन ही मचाया धमाल, कमाए इतने करोड़ रुपये
अहान पांडे और अनीत पड्डा की डेब्यू फिल्म ‘सैयारा’ ने पहले दिन ही मचाया धमाल, कमाए इतने करोड़ रुपये
महाराज ने केन्द्रीय मंत्री से ऐतिहासिक स्थलों पर शोध का किया अनुरोध
महाराज ने केन्द्रीय मंत्री से ऐतिहासिक स्थलों पर शोध का किया अनुरोध

निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव की दिशा में उचित कदम

निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव की दिशा में उचित कदम

संध्‍या
लोकतंत्र में दलीय विचारधारा के आधार पर एक-दूसरे की नीतियों से असहमति हो सकती है लेकिन जब पार्टियों के समर्थक मामूली बात पर आमने-सामने होते दिखें तो चुनाव आयोग के सुरक्षा बंदोबस्तों की परीक्षा भी होती है। एक वक्त था जब लोकतांत्रिक देशों में भी स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराना बड़ी चुनौती थी। भारत जैसे देश में भी स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव की राह में कम चुनौतियां नहीं हैं। चुनाव आयोग अपनी तरफ से बाधा रहित चुनाव कराने के बंदोबस्त में जुटा है। अपने इन्हीं प्रयासों के तहत चुनाव आयोग ने ताजा निर्देशों के तहत छह राज्यों में गृह सचिवों व पश्चिम बंंगाल के पुलिस महानिदेशक को हटाने के लिए कहा है। चुनाव आयोग के स्थायी निर्देशों की पालना नहीं होने पर यह सख्ती की गई है। पहले से जारी व्यवस्था के अनुसार चुनाव कार्यों से जुड़े उन अफसरों को अन्यत्र स्थानांतरित करना होता है जो पदस्थापन के तीन साल एक ही जगह पर पूरे कर चुके हैं या जिनकी तैनाती गृह जिले में हैं। हैरत की बात यह है कि चुनाव कार्यक्रम घोषित होने के बाद भी संबंधित राज्यों में इन अहम पदों पर अफसरों को तैनात किया हुआ था। महाराष्ट्र में कुछ नगरीय निकायों में भी आयोग ने निर्देशों की अनदेखी पर नाराजगी जाहिर की है।

भारत के आम चुनावों पर पूरी दुनिया की नजर इसलिए भी रहती है कि यहां के चुनाव दूसरे देशों के लिए नजीर भी बनते हैं। यह बात सही है कि बीते बरसों में हमारे यहां चुनावी हिंसा की घटनाओं में अपेक्षाकृत कमी आई है। लेकिन यह भी सही है कि कुछ राज्य अब भी मतदान पूर्व और इसके बाद होने वाली हिंसक घटनाओं के लिए बदनाम हैं। ऐसे में कई बार स्थानीय अफसरों की मिलीभगत अथवा लापरवाही भी सामने आती रही है। निष्पक्ष चुनावों की दिशा में सिर्फ आयोग का यह कदम ही पर्याप्त नहीं। बड़ी चुनौती कालेधन के प्रवाह को रोकने की भी है। हर बार आयोग की सतर्कता टीमें करोड़ों रुपए बरामद करती रही हैं, जिनका कहीं कोई हिसाब-किताब नहीं होता। इसी तरह चुनावों में प्रलोभन के रूप में मतदाताओं को शराब व अन्य सामग्री बांटे जाने की खबरें भी आती रहती हैं। रही-सही कसर प्रचार अभियान में नेताओं व उनके समर्थकों के बिगड़े बोल पूरी कर देते हैं। पहले से लेकर सातवें चरण तक के मतदान और इसके बाद मतगणना तक का लम्बा समय है।

लोकतंत्र में दलीय विचारधारा के आधार पर एक-दूसरे की नीतियों से असहमति हो सकती है लेकिन जब पार्टियों के समर्थक मामूली बात पर आमने-सामने होते दिखें तो चुनाव आयोग के सुरक्षा बंदोबस्तों की परीक्षा भी होती है। सबसे बड़ा सवाल चुनाव आयोग को और शक्तिमान बनाने का है। जितनी सख्ती अफसरों को हटाने के निर्देश देकर चुनाव आयोग ने दिखाई है, उससे ज्यादा सख्ती चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन करने वाले राजनेताओं पर दिखानी होगी। ऐसा हुआ तो चुनाव शांतिपूर्ण होने की उम्मीदें ज्यादा रहेंगी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back To Top