ब्यूरो रिपोट— प्रमोशन में आरक्षण का जिन्न एक बार फिर बोतल से बाहर आ गया है। जनरैल सिंह बनाम लक्ष्मी नारायण गुप्ता और अन्य मुकदमों में सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्य सरकारों से कहा है कि वे प्रमोशन में आरक्षण पर कानूनी पक्षों को ध्यान दें। अदालत के इस फैसले के बाद, सामान्य और आरक्षित वर्ग के कर्मचारियों का ध्यान राज्य सरकारों पर है। मुख्य सचिव ओम प्रकाश ने कहा कि उन्हें अभी तक अदालत के फैसले की प्रति नहीं मिली है।
उनके अनुसार, उत्तराखंड में प्रमोशन में आरक्षण पर अदालत से निर्णय लिया गया है। इस बीच, उत्तराखंड अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति कर्मचारी महासंघ ने राज्य सरकार से अनुरोध किया है कि उसे सुप्रीम कोर्ट द्वारा राज्यों से नोटों की मांग के बाद अपनी गलती को सुधारने का अवसर मिले। प्रमोशन में आरक्षण के खिलाफ आंदोलन कर रहे अखिल भारतीय समानता मंच ने कहा कि राज्य सरकार को किसी भी वर्ग के दबाव में नहीं आना चाहिए और पहले दी गई व्यवस्था में कोई बदलाव नहीं करना चाहिए।
ये है सुप्रीम कोर्ट के आदेश एससी और एसटी को पदोन्नति में आरक्षण और परिणामी वरीयता के मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों से कहा है कि वे अदालत में लंबित अपने कानूनी पहलुओं का लिखित नोट बनाएं और इसे अटॉर्नी जनरल को सौंप दें। दो सप्ताह में राज्यों के रिकॉर्ड पर अधिवक्ता को लिखित नोट जमा करने के आदेश दिए गए हैं। अटॉर्नी जनरल को राज्यों के नोटों को देखने के बाद चार सप्ताह में अदालत में मसौदा कानूनी मुद्दा दायर करना होगा।
कोर्ट के फैसले से कर्मचारी संगठन हरकत में कोर्ट का फैसला आने के बाद प्रमोशन में आरक्षण के खिलाफ और समर्थन में आंदोलनरत रहे कर्मचारी संगठन चौंकन्ने हो गए हैं। वे अब अपने अपने पक्ष को लेकर प्रदेश सरकार से मांग कर रहे हैं। भूल सुधारे प्रदेश सरकार : करम राम उत्तराखंड अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति इंप्लाइज फेडरेशन के प्रदेश अध्यक्ष करम राम ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अब राज्य सरकार के पास पूर्व में की गई भूल को सुधारने का अवसर है।
उन्होंने कहा कि राज्य सरकार अब जो नोट तैयार करे, उसमें इंदु कुमार पांडेय और इरशाद हुसैन आयोग की रिपोर्ट के तथ्यों का भी प्रमुखता उल्लेख करे। करम राम के मुताबिक, राज्य सेवा में अभी भी एससी एसटी कर्मचारियों का प्रतिनिधित्व पूरा नहीं है। एससी के 19 प्रतिशत के सापेक्ष समूह कमें 11.84 प्रतिशत, समूह ख में 12.16 प्रतिशत और समूह ग में 13.91 प्रतिशत ही प्रतिनिधित्व है।
इसी तरह एसटी कर्मचारियों का चार प्रतिशत आरक्षण के सापेक्ष तीनों समूहों में 1.66 प्रतिशत से लेकर 2.98 प्रतिशत तक है। वर्ग विशेष के दबाव में न आए सरकार : नौटियाल अखिल भारतीय समानता मंच के राष्ट्रीय महासचिव वीपी नौटियाल ने कहा कि उत्तराखंड में राज्य में वर्तमान में प्रमोशन में आरक्षण की व्यवस्था नहीं है। प्रदेश सरकार को किसी वर्ग विशेष के दबाव में नहीं आना चाहिए। यदि सरकार किसी वर्ग विशेष के दबाव में कोई भी परिवर्तन करने की बात होती है तो मंच और उत्तराखंड जनरल ओबीसी इंप्लाइज एसोसिएशन चुप नहीं बैठेंगे।
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