मानव का परम धर्म है भगवान की भक्ति:राम जीत शर्मा
हिन्दुस्तान संवाददाता
हरिद्वार-भारतीय ऋषिमुनियों और चिंतकों के मतानुसार सृष्टि में मानव से अधिक श्रेष्ठ और कोई नहीं। मनुष्य जीवन सृष्टि की सर्वोपरि कलाकृति है। ऐसी कायिक और मानसिक सर्वागपूर्ण रचना और किसी प्राणी की नहीं है। जब एक बार कोई मनुष्य योनि में आ जाता है तो मानवता उससे स्वयं जुड़ जाती है। इसका सर्वदा ध्यान रखना, उससे विलग न होना ही मानव जीवन की सार्थकता है
कुम्भ नगरी हरिद्वार में आयोजित अजरानन्द अंध विद्यालय के समीप गिलहरी पंडाल में इन दिनों मानव धर्म नाट्य का आयोजन किया जा रहा है /नाट्य में नारद मुनि का किरदार निभाने वाले वृन्दावन के कलाकार राम जीत शर्मा ने पत्रकारों से रु ब रु होते हुए बताया की मनुष्य जाति का विस्तार किसी विशेष परिधि तक सीमित न होकर विश्वव्यापी है। अत: इसका विकास चाहे किसी भूखण्ड पर ही, किन्तु विश्वभर की मानव जाति एक ही है। समानता की इसी भावना को आत्मसात करते हुए हमारे मनीषियों न कहा- ‘ईशावास्यमिदं र्सव यत्किंचित जगत्यांजगत्’ अर्थात् यह सब जा कुछ पृथ्वी पर चराचर वस्तु है, ईश्वर से आच्छादित है। मानव धर्म वह व्यवहार है, जो मानव जगत् में परस्पर प्रेम, सहानुभूति, एक दूसरे का सम्मान करना आदि सिखा कर हमें उच्च आदर्शो की ओर ले जाता है। धर्म वह मानवीय आचरण है, जो अलौकिक कल्पना पर आधारित है और जिनका आचरण श्रेयस्कर माना जाता है। संसार के लगभग सभी धर्मो की मान्यता है कि विश्व एक नैतिक राज्य है और धर्म उस नैतिक राज्य का कानून है। दूसरों की भावनाओं को न समझना, उनके साथ अन्याय करना और अपनी जिद पर अड़े रहना धर्म नहीं है। एकता, औदार्य, सौमनस्य और सब का आदर ही धर्म का मार्ग है और सच्ची मानवता का परिचय है