1-एक सवाल ? सरकार द्वारा अभी तक कोई गाइडलाइन तय क्यों नही की गई
2-नशामुक्ति केंद्रों की स्थापना व संचालन किसकी अनुमति से हो रहा है? नशामुक्ति के लिए नशे से जुड़े उपचार विशेषज्ञों के माध्यम से उपचार हो रहा है या नहीं, मरीजों को देखने वाले लोगों की योग्यता क्या है?
नशा उन्मूलन केंद्र को नशे की लत छुड़वाने का केंद्र माना जाता है। परेशान लोग अपने परिवार, रिश्तेदार या परिचितों को इस उम्मीद से वहां दाखिल करते हैं कि इस लत से छुटकारा मिलेगा और पीड़ित समाज की मुख्यधारा में लौट आएगा।
इसके लिए वह मुंह मांगी रकम चुकाने को भी तैयार रहते हैं। इन केंद्रों में मरीजों के साथ क्या होता है, यह दो केस ही पूरी पोल खोल रहे हैं। इन दोनों मामलों को देखकर लगता है कि ये केंद्र व्यवसाय का जरिया बन गए हैं। यहां मरीजों के शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न के मामले भी सामने आ रहे हैं।
राजधानी देहरादून में आय दिन नये नशामुक्ति केंद्र खुल ही रहे हैं। जो खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहे। ये शासन स्तर की लापरवाही नहीं तो क्या है़? क्योंकि सरकार की कोई गाइडलाइन न होने के चलते केंद्रों के संचालकों ने समिति, संस्था, ट्रस्ट के नाम पर पंजीकरण करवा रखा है। जिसके चलते इन केंद्रों में मनमाफिक राज चल रहा है । जिसमें मरीजों को प्रताड़ित करना एवं इलाज के नाम पर उनके परिजनों से मोटी फीस वसूलना है। इसके अलावा कई केंद्रों में रिहेब के नाम पर केंद्रों को वृद्धाश्रम से लेकर मानसिक रोगियों की सेवा करने का स्थान भी बनाया गया है। जो किसी भी प्रकार का नशा नहीं करते लेकिन उन्हें फिर भी नशामुक्ति केंद्रों में भर्ती किया जा रहा है।
इन संस्थानों में स्वास्थ विभाग की टीम के अलावा सरकार की कोई भी टीम ऐसी नहीं जो केंद्रों में जाकर निरीक्षण कर वहां की वस्तुस्थिति को जांच कर उसे प्रेषित करे। लिहाजा इन केंद्रों में मानकों के विपरित काम ही होते रहेंगे। इस बात की पुष्टि हाल ही में कुछ संस्थाओं में हुई घटनाएं इस बात की पुष्टि करती हैं।
शहर के नशामुक्ति केंद्रों में अव्यवस्थाओं का अंबार है। कई बार केंद्रों पर गंभीर आरोप भी लगे हैं। केंद्रों पर आरोप लगते हैं कि वहां नशा छुड़ाने के नाम पर रोगियों को फर्श पर लिटाया जाता है। उनसे तमाम कार्य कराए जाते हैं। यही नहीं उन्हें महीनों तक एक कमरे में बंद रखा जाता है। कई मामले तो रोगियों को पीटने तक के मामले सामने आ चुके हैं। जिसकी वजह से उनमें मौत तक हो चुकी है। वहीं 2018 में शहर के एक नशामुक्ति केंद्र से 42 मरीजो के भागने का मामला भी सामने आया था जिसके बाद उनके चौंकाने वाले बयान ने सनसनी फैला दी थी उन्होंने बताया कि उन्हें नशा मुक्ति केंद्र में किस तरह से प्रताड़ित किया जाता है और उन्हें तरह-तरह की यातनाएं दी जाती है
पहले भी सवालो के घेरे में रहे है केंद्र
बीते वर्षों सहसपुर स्थित एक नशामुक्ति केंद्र में संचालक ने ऐसा घिनौना काम किया कि लोगों का इन केंद्रों से विश्वास उठ गया। केंद्र में नशे से पीड़ित एक नाबालिग के परिजनों ने उसे सेंटर में भर्ती कराया। कुछ दिन बाद पीड़ित ने परिजनों को बताया कि सेंटर संचालक ने उसके साथ कुकर्म किया। हरकत में आई पुलिस ने संचालक को दबोच लिया था।
विगत दिनों नशामुक्ति केंद्रों पर मरीजों के साथ उत्पीड़न की बात सामने आने के बाद सरकार ने पंजाब और राजस्थान की तर्ज पर प्रदेश में नशा विरोधी नीति बनाने की कवायद शुरू की थी। इसमें नशामुक्ति केंद्रों को स्वास्थ्य विभाग के अंतर्गत में संचालन करने की योजना थी। जिसके लिए एक टास्क फोर्स का गठन किया गया था। जो पंजाब से समन्वय स्थापित कर नशा विरोधी नीति का प्रस्ताव बनाएगी। सरकार की इस कवायद का अभी कोई सकारात्मक परिणाम सामने नहीं आया है।
नशा विरोध नीति एवं नशामुक्ति केंद्रों को स्वास्थ्य विभाग के अंडर संचालित करने के लिए प्रस्ताव शासन को भेजा गया है। इसके अलावा उन्होंने बताया कि केंद्रों में उपचार लेकर आए रोगी अपनी शिकायत पुलिस को कर सकते हैं। पुलिस कानूनी स्तर पर जांच पड़ताल करेगी। जिसमें ऐसे संचालित केंद्र पर जहां यातनाएं एवं अन्य प्रकार की गतिविधियां जोकि कानून अपराध हैं पाई जाती हैं तो सख्ती से कार्रवाई की जाएगी
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