Friday, December 8, 2023
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पौड़ी वन प्रभाग की ‘दीबा रेंज’ में एक ऐसी रहस्यमयी गुफा जिसकी सच्चाई जानकर उड़ जायेंगे आपके होश

रिपोर्ट – अजय भण्डारी, कोटद्वार।
देश और विदेशों में उत्तराखंड को देवभूमि के नाम से जाना जाता है। उत्तराखंड हर समय दैवीय शक्तियों की अलौकिक विशेषता को यहाँ पर उजागर करता है। ऐसे में आज आपको एक ऐसे ही दैवीय शक्ति से परिपूर्ण ” अद्भुत अलौकिक रहस्यमयी गुफा ” से रूबरू कराते हैं।
नैनीडांडा ब्लाक की यह रहस्यमई गुफा अविश्वसनीय, आध्यात्मिक, अकल्पनीय व रहस्यों से परिपूर्ण है। जिसका इतिहास शायद ही किसी को मालूम हो। आपको बतादें कि नैनीडांडा ब्लॉक में खाल्यो डांडा एक जगह पड़ती है। यहां पर दूरदराज़ के कई गांव स्थित हैं और खालो डांडा खुद में एक छोटा सा बाज़ार है जिसमें गिनी- चुनी दुकाने हैं। यह पूरा क्षेत्र पौड़ी वन प्रभाग की दीबा रेंज में आता है। इसके घने जंगलों से गुजरते हुए तकरीबन 4 या 5 किमी की पैदल चढ़ाई चढ़ने व ढाल उतरने के बाद जंगल के बीचों-बीच एक जगह दिखाई पड़ती है। “देवी ढौर” इसी जगह पर स्थित है यह एक रहस्यमई गुफा है। “देवी ढौर” के नाम से प्रचलित यह गुफा हर समय अपने आप में एक रहस्य को सामने खड़ा कर देती है। जो भी शख्स इस गुफा का पहली बार दीदार करता है वह इस गुफा की अविश्वसनीय अकल्पनीय और अलौकिकता पर सोचने पर विवश हो जाता है कि आखिर इस प्राचीनतम गुफा का निर्माण कब और कैसे हुआ। लेकिन शायद ही इस गुफा का इतिहास किसी को मालूम लग पाता हो, क्योंकि यह गुफा अपने आप मे रहस्यमय ही है।
 यहाँ के ग्रामीण इस गुफा के इतिहास के बारे में तो कुछ नही जानते लेकिन उनकी धारणा है कि यह रहस्यमय प्राचीनतम गुफा किसी दैवीय शक्ति की देन है लेकिन इस गुफा की सच्चाई आज भी सबके लिए एक अनसुलझा रहस्य है। इतना कुछ सुनने और जानने के बाद आखिरकार हमें इस “देवी ढौर” नाम की रहस्यमयी गुफा के बारे में जानने की जिज्ञासा हुई तो बिना देर किए हम नैनीडांडा ब्लॉक के खलयो डांडा निकल पड़े। यहाँ पंहुचने के बाद इस जगह से हमने पैदल जंगल की ओर चढ़ाई का रुख किया। काफी चढ़ने और उतरने के बाद हम जंगलो के बीचोबीच एक जगह पर पहुंचे जहां हमें खस्ताहाल हालात में एक गेट नजर आया और वही पास में एक यात्री सेड। वहाँ पर विश्राम करते ही एक साइन बोर्ड पर नजर पड़ी जो कि पूरी तरह धुन्दला हो चुका था लेकिन जब उस पर बारीकी से नजर दौड़ाई तो उस पर कुछ इस तरह से लिखा हुआ था इस गुफा में दर्शन करने के लिए मानसिक श्रद्धा समर्पित करें ,गुफा की स्वच्छता व वनाग्नि के लिहाज से गुफा में धूप, अगरबत्ती का प्रयोग न करे, पुष्प व धनराशि गुफा में न चढाए। यह बोर्ड वन प्रभाग पौड़ी की दीबा रेंज की ओर से यहाँ पर लगाया गया है,
अब हम इस जगह से गुफा की ओर को ढलान में निकल पड़े तब कुछ दूरी पर नीचे उतरते ही एक गेट और नजर आया जो कि गुफा के पास बनाया गया है, तो आखिरकार तब हम गुफा के पास पहुंच ही गए मन मे गुफा के रहस्यों के बारे में जानने की काफी उत्सुकता भी थी और गुफा के अविश्वसनीय, अकल्पनीय और अलौकिकता के बारे में जानने की चाहत भी।
गुफा के पास एक छोटी सी जगह समतल है, गुफा से नीचे बहुत गहरी खाई है, वहीं गुफा के बाहर अब शायद श्रद्धालुओं के द्वारा घण्टियाँ भी लगाई गयी है, बाहर ही एक दुर्गा माँ का चित्र भी नज़र आया, अब गुफा में नीचे उतरते हुए अंदर के लिए प्रवेश किया, तो इस गुफा के काफी संकरा और अंदर काफी अंधेरा होने से पहली बार अंदर जाने में हल्का डर भी महसूस हुआ, लेकिन साथ ही गुफा के रहस्यों को जानने की उत्सुकता के साथ मोबाइल की टॉर्च जलाते हुए आगे बड़े थोड़ी दूरी तक कठनाई से चलने के बाद अंदर का जो नजारा दिखा आंखे खुली की खुली ही रह गयी, हालांकि अंदर काफी अंधेरा था, लेकिन अंदर पँहुचते ही एक काफी जगह वाला कमरा आ गया, अभी तक हमें गुफा के संकरे होने के कारण अंदर प्रवेश करने में भी काफी दिक्कतें हो रही थी लेकिन उस कमरे में हम आसानी से खड़े हो पा रहे थे, और वहाँ काफी जगह भी मौजूद थीं, फिर हमने फोन की टॉर्च की मदद से रहस्यों को तलाशने की कोशिश की जो कि हमने यहाँ पहुंचने से पहले सुना था, तो सारी सुनी बातें हकीकत की तरह सामने आने लगी, गुफा के अंदर ऐसे ऐसे एकाएक पत्थर नजर आए जो शायद ही हमने पहले कहीं देखे होंगे उनकी बनावट ही अपने आप मे दैवीय नजर आ रही थी, कोई पत्थर संगमरमर की तुलना से भी अलग थे तो कुछ पर प्रकाश पड़ते ही ऐसे प्रतीत हो रहे थे मानो नवरत्न इसी पत्थर में समाहित होंगे, वहीं इस अद्भुत गुफा के प्रथम तल में ही हमारी नजर एक प्रकृतिक निर्मित शिवलिंग पर भी जा पड़ी, जो कि इस गुफा को आध्यात्मिकता के दृष्टिकोण पर सहज ही खड़ा करता है, यह भी एक अद्भुत चमत्कार है कि यहाँ पर प्रकतिक बना हुआ शिवलिंग मौजूद है, और ये ही दैवीय शक्ति के साक्ष्य। अब इस प्रथम तल से ऊपर की ओर फिर आगे का रास्ता कठनाई से जाता है तो यहाँ पर दूसरे तल से ठीक पहले एक पानी का छोटा सा कुंड है, अब सवाल यही उठता है जहन में की आखिर इस गुफा के अंदर इस कुंड में यह पानी कहां से आ गया अगर माना जाए कि यह पानी श्रोत का है तो ये पानी महज कुंड में ही क्यों है यह कम ज्यादा क्यों नही हो रहा ये भी सोचने जैसा था और ये किसी चमत्कार से कम नही। इसमें भी दैवीय शक्ती को नकारा नही जा सकता।
क्योंकि यदि यह पानी किसी प्राकृतिक श्रोत से कुंड में आता रहता तो वह निश्चित ही गुफा के प्रथम तल में भर जाता लेकिन यहां पर ऐसा कुछ नही है कुंड मे एकसमान एकत्रित पानी है जिसे उपयोग में ला सकते हैं और न ही ये कम होता। इसके बाद गुफा के दूसरे तल में भी चमत्कारी पत्थरों की बनावट ही नजर आयी जिनमें दिए कि आकृति व नाग की आकृति बनी हुई नजर आयी वहीं गौर करने वाली बात ये भी है कि यहाँ पर कुछ पत्थरों को बजाने पर यह ढोल जैसीं ध्वनि उत्पन्न कर रहे थे, इससे आगे गुफा में तीसरे तल में बढ़ने के लिए आगे का रास्ता और भी कठनाई भरा और संकरा हो जाता है यहां पर हमें सांस लेने में भी तकलीफ हो रही थी इसलिए हम “देवी ढौर” के नाम से प्रचलित इस अविश्वसनीय, अकल्पनीय और अलौकिकता से परिपूर्ण गुफा से यहीं से वापस लौट आए। लेकिन इतना जरूर कहेंगे कि वास्तव में इस गुफा के रहस्य आज भी गुफा के अंधकार में अंधकार ही हैं। वहीं सुना था कि इस गुफा के तकरीबन सात तल है
हालांकि इसकी पुष्टि आज तक नही हो पायी क्योंकि कोई भी इस गुफा के पूरे तलो में नही जा पाया है, यह भी आज तक रहस्य ही है कि आखिर गुफा कहाँ समाप्त हो रही है, वहीं गुफा के यहाँ पर पता लगने कि बातों में जिक्र आता है कि यहाँ आस पास के गॉव पोखार के किसी गोहरी की बकरी इस गुफा में चली गई थी तब गोहरी बकरी निकालने को लेकर इसमें गया और तब जाके गुफा की हकीकत सामने आयी, इसके बाद यहां ग्रमीणों द्वारा पूजा अर्चना की गयी और यहाँ पर तब से हर शिवरात्रि के मौके पर पूजा पाठ के साथ ही किर्तन भी किया जाता है, हालांकि इस दैवीय गुफा का इतिहास आज भी सबके लिए एक बड़ा रहस्य है। ऐसे में यदि इस गुफा का संज्ञान पुरातत्व विभाग ले तो यहां से कई रहस्य सामने आ सकते हैं, वहीं पर्यटन के लिहाज से भी इस गुफा पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है
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