उत्तराखंड में भू कानून लागू करने व मूल निवास की मांग को लेकर राज्य आंदोलनकारियों द्वारा परेड ग्राउंड से मुख्यमंत्री आवास तक निकाली गयी रैली जिसमें हजारों की संख्या में उतराखन्डवासियो ने शिरकत की।
भू कानून वास्तविक रूप से पहाड़ों में बाहरी लोगों अर्थात् राज्य से बाहर के लोगों की भूमि क्रय करने की सीमा का निर्धारण करता है। उत्तराखण्ड भू कानून बहुत लचीला है, भूमि क्रय की अधिकतम सीमा को समाप्त करने के कारण बाहरी राज्यों के लोग उत्तराखण्ड में जमीन का क्रय बिना सीमा के आसानी से कर रहे हैं
दरअसल उत्तराखंड राज्य तो बना पर यहां कोई कानून नहीं बना। Upzlar (उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम)ही अभी तक चल रहा है। मतलब पृथक राज्य बनने का कोई फायदा नहीं हुआ। इसलिए ही आज भू कानून वो भी हिमाचल की तर्ज पर के लिए सड़कों पर उतरना जरुरी हो गया है।हिमाचल प्रदेश में ऐसा कानून है कि वहां बाहरी व्यक्ति एक इंच भी जमीन नहीं ले सकता। साथ ही मूल निवास खत्म कर दिया गया है,उसकी जगह स्थाई निवास प्रमाण पत्र कर दिया गया है जो हर कोई बना सकता है।इससे स्पष्ट होता है कि हमारे अस्तित्व को खतरा है। अतः अपनी संस्कृति और अस्मिता को बचाने के लिए भू कानून और मूल निवास जरूरी है। इसलिए जब तक भू कानून लागू नहीं हो जाता हमारा संघर्ष जारी रहेगा। आंदोलन में भाग लेने वाली महिलाओं में सरिता जुयाल, सुलोचना भट्ट,राधा तिवारी, अनिता नेगी, संगीता सेमवाल,प्रभा बलोदी,बबली राणा, अनिता राणा, रंजिता पूनम डबराल, बीनू, तारा आदि अनेक महिलाएं रही।