देहरादून । उत्तराखंड में स्कूल दो नवंबर से बोर्ड कक्षाओं के लिए खुलने जा रहे हैं, लेकिन देहरादून के अभिभावक अभी इसके लिए तैयार नहीं दिख रहे। उनकी सबसे बड़ी चिंता यह है कि बच्चे घर से स्कूल तक की दूरी कैसे तय करेंगे। अगर इस बीच उन्हें कोरोना वायरस संक्रमण हो जाता है तो कौन इसके लिए जिम्मेदार होगा।
यूं तो कई निजी स्कूलों द्वारा छात्र-छात्राओं के लिए ट्रांसपोर्ट सुविधा उपलब्ध करवाई जाती है और कई अभिभावक खुद अपने बच्चों को स्कूल छोड़ने और लेने जाते हैं। पर बड़ी संख्या में ऐसे छात्र-छात्राएं भी हैं, जो इन दोनों विकल्पों की बजाए पब्लिक ट्रांसपोर्ट से स्कूल तक का सफर तय करते हैं या फिर यह दूरी पैदल तय ककरते हैं। इन बच्चों के अभिभावकों में स्कूल खुलने को लेकर ज्यादा चिंता है। चकराता रोड निवासी पूजा शर्मा ने बताया कि उनकी बेटी एक निजी स्कूल में दसवीं कक्षा में पढ़ रही है। वह साइकिल से स्कूल आना-जाना करती है। उन्होंने चिंता जाहिर करते हुए कहा कि इतने महीनों से उसे घर से बाहर नहीं निकलने दिया है, लेकिन अब स्कूल खुलने पर वह खुद स्कूल जाने की जिद करने लगी है। सबसे बड़ा खतरा यह है कि स्कूल के रास्ते में उसे कहीं संक्रमण ना हो जाए।
उधर, प्रिंसिपल प्रोग्रेसिव स्कूल्स एसोसिएशन (पीपीएसए) के अध्यक्ष प्रेम कश्यप का कहना है कि 50 फीसद से कम बच्चे स्कूल आते हैं तो स्कूलों द्वारा बस चलाने पर उनका घाटा ही होगा। ऐसे में ज्यादातर स्कूल अभिभावकों से यही अपील करेंगे कि वे बच्चों को खुद ही स्कूल छोड़ें।
क्या बोले अभिभावक
अभिभावक कविता वर्मा का कहना है कि आधा सत्र ऑनलाइन पढ़ाई करते हुए निकल चुका है। तो क्यों न बाकी के महीनों में भी इसी तरह पढ़ाई हो और बच्चों को केवल बोर्ड परीक्षाओं के लिए स्कूल बुलाया जाए। मेरी बेटी 12वीं कक्षा में है और खुद साइकिल से स्कूल तक का सफर तय करती है। संक्रमण होने का जोखिम लेने से अच्छा है वह घर से ही पढ़ाई करे। ऐसे ही एक अभिभावक सुरेंद्र पाल का कहना है कि मेरे दोनों बच्चे 10 वीं और 12 वीं कक्षा में हैं। नवंबर से दोनों के स्कूल खुलने जा रहे हैं, लेकिन ना तो निजी स्कूल ना ही सरकार इनकी जिम्मेदारी लेने को तैयार है। फिर कोई क्यों अपने बच्चों को स्कूल भेजेगा पढ़ाई से ज्यादा बच्चों का स्वास्थ्य और जीवन जरूरी है।
सरकार ने सरकारी और निजी दोनों स्कूलों के लिए एसओपी जारी कर दी है, लेकिन निजी स्कूल संचालकों का साफ कहना है कि 50 फीसद छात्र आने के बाद ही स्कूल खोले जाएंगे। निजी स्कूलों ने सरकार की ओर से जारी एसओपी में संशोधन की मांग की है। निजी स्कूल संचालकों का कहना है कि हरियाणा सरकार ने निजी स्कूलों को एसओपी जारी करने को कहा है। पर उत्तराखंड में सरकार ने जो एसओपी जारी की है, उससे निजी स्कूल संचालक संतुष्ट नहीं हैं। ऐसे में कई बिंदुओं पर संशोधन किया जाना चाहिए। प्रिंसिपल प्रोग्रेसिव स्कूल्स एसोसिएशन (पीपीएसए) ने मुख्यमंत्री, शिक्षा मंत्री, शिक्षा सचिव को इस संबंध में पत्र लिखा है।
निजी स्कूलों पर न डाली जाए जिम्मेदारी
पीपीएसए के अध्यक्ष प्रेम कश्यप ने राज्य सरकार से बच्चों को कोरोना होने की स्थिति में इसकी जिम्मेदारी निजी स्कूलों पर न डाले जाने की मांग की है। कश्यप का कहना है कि स्कूल अपनी ओर से बच्चों की सुरक्षा की पूरी व्यवस्था करेगा, लेकिन अगर किसी बच्चे को कोरोना हो गया तो इसकी जिम्मेदारी स्कूलों पर डालना ठीक नहीं है। बच्चे अधिकांश समय घर पर ही व्यतीत करते हैं। अगर किसी का स्वास्थ्य पहले से खराब है और स्कूल आने के बाद ज्यादा बिगड़ जाता है तो ऐसी स्थिति में भी स्कूल संचालकों पर ही कार्रवाई होगी। इस तरह के निर्देश में संशोधन किया जाना जरूरी है।
– शिक्षकों को कोरोना वारियर्स घोषित किया जाए।
– किसी भी छात्र छात्र के कोरोना पॉजिटिव पाए जाने पर स्कूल जिम्मेदार नहीं माने जाएं।
– जिन कक्षा के छात्र छात्राओं के लिए स्कूल जाएंगे, उनकी ऑनलाइन क्लास नहीं होगी।
– शिक्षक और कर्मचारियों का बीमा सरकार द्वारा किया जाए।
– अभिभावक अपने बच्चों की पूर्ण जिम्मेदारी लेंगे।
– कोरोना वायरस का कोई भी लक्षण दिखने पर अभिभावक बच्चे का कोरोना टेस्ट कराने के बाद रिपोर्ट नेगेटिव आने पर बच्चे को स्कूल भेजेंगे।